Tuesday, December 21, 2010

Politics and Religion

गांधी जी ने मरते वक्त हे राम कहा था। तब गान्धी जी राम से भारत की सुरक्षा मांग रहे थे। आज भारत में राम या यों कहें हिन्दु धर्म को भारतीय राजनीतिज्ञों से सुरक्षा मुहैय्या करवाने की आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
युवराज की बातें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो भारत में हिन्दू आतंकवाद एक बड़ी समस्या हो गयी हो। आज सारे विश्व में चतुर्दिक इस्लामिक फिरकापरस्तों द्वारा किये गये आतंकी हमलों की तुलना कुछ
कतिपय मुट्ठी भर सिरफिरे हिन्दुओं के द्वारा की गयी चन्द वारदातों, से करना महज एक राजनैतिक दांवपेंच से इतर कुछ भी नहीं है। यह वोट बैंक की राजनीति और कुछ करे या न करे हिन्दु मुस्लिम समाज में एक विषम खाई पैदा करने में जरुर समर्थ होगी। और अगर हर आतंकवादी घटना को धर्म की दृष्टि से देखना शुरु किया गया तो माओवाद को क्रिस्चियन आतकवाद की संज्ञा देनी होगी। अन्ततः अधिकांश माओवादी आदिवासी जनसमुदाय से आते हैं और इनमें इसाइयों की संख्या सबसे अधिक है। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि इस हिन्दु आतंकवाद का आभास सिर्फ कांग्रेस दल को ही क्यों होता है। आम आदमी को क्यों नहीं। तथाकथित हिन्दु आतंकवाद के केन्द्र बिन्दु गुजरात में भी मुस्लिम वर्ग अन्य राज्यों में बस रहे मुस्लिम समुदाय की अपेक्षा अधिक खुशहाल है। ऐसा प्रतीत होता है कि युवराज और पाकिस्तानी सेना में कुछ सांठ गांठ है। पाकिस्तानी सेना ने वहां की आवाम को भारत का भय दिखा पिछले पचास वर्षों से अपनी सत्ता कायम कर रखी है। उसी के प्रारुप में युवराज भारतीय मुस्लिम समुदाय को भाजपा व संघ का भय दिखा अपनी सत्ता बनाने के प्रयास में है।
इस भय की नकारात्मक राजनीति से राज्य चला कर किसी उन्नति की अपेक्षा मूर्खता है। प्रगति तो भय मुक्त समाज की ही सकती होती है। पाकिस्तान में विगत पचास वर्षों से सैन्य शासन भय की धूरी पर ही घूम रहा है। प्रतिफल है कि पाकिस्तान की अन्तरराष्ट्रीय छवि एक FAILED STATEFAILED STATE की हो चुकी है। खेद है कि युवराज ने भी एक FAILED STATEFAILED STATE STATE को ही अपना प्रेरणा श्रोत माना है।
यहीं से गणतन्त्र का ह्रास आरम्भ होता है। राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एवं
हिन्दु धर्म में भय के परित्याग पर विशेष बल दिया गया है। जननी जन्म्भूमि स्वर्गादपि गरीयसि कहने वाला एक मात्र धर्म हिन्दु धर्म ही है।स्वर्ग की परिकल्पना एक धार्मिक उपक्रम है। इस स्त्रोत के द्वारा राष्ट्र को स्वर्ग के समकक्ष रख हिन्दू धर्म स्वतः राष्ट्रवादी हो जाता है। भयमुक्त जनता ही राष्ट्र के हित में सोच सकती है।
यहां 26/11 घटता है तो अन्तुले जी के मार्फत से भगवा आतंकवाद का नारा लगवाया जाता है। चलिये एक विहंगम दृष्टि डाल देखा जाये यह भगवा आतंकवाद कितनी बड़ी समस्या है। इस देखने के लिये अगर आप कांग्रेस की दृष्टि अपनाते हैं तो राष्ट्रीय स्वय सेवक से जुड़े या उससे सहानुभूति रखने वाले जितने भी लोग हैं वे सब तो आतंकवादी की श्रेणी में खड़े मिलेंगे ही, इसके अलावा हर वह व्यक्ति जो प्रत्यक्ष रुप से हिन्दु संस्कारों का कोई भी प्रतीक धारण करता है,यथा तिलक या शिखा वह स्वतः सन्देह के घेरे में आजाता है।तथ्य यह है कि आजतक जितने भी तथाकथित भगवा आतंकवाद की वारदातें हुयी हैं,उनमें से एक वारदात में भी आरोपपत्र तक दाखिला नहीं हो पाया है, आरोप प्रमाणित होने की बात तो दूर है।
आजादी के पहले कांग्रेस पर जो भी आरोप मुस्लिम लीग लगा रही थी आज कमोबेश वे सारे इल्जाम कांग्रेस भा ज पा पर लगा रही है। जिन्ना ने गांधी जी तक को हिन्दु नेता के विशेषण से सम्बोधित किया था । आज वैसी ही मानसिकता कांग्रेस की हो चुकी है। मुस्लिम लीग के ऐसा करने के पार्श्व में भारत के विभाजन की इच्छा थी। कांग्रेस वोट की अन्धी दौड़ में उसी दिशा में प्रयाण कर रही प्रतीत होती है। गान्धी जी ने हिन्दु मुस्लिम के अलग अलग चुनाव क्षेत्र का सख्त प्रतिरोध किया था। अंग्रेजों ने DIOVIDE AND RULE की नीति के तहत इस कानून को लागू किया था। उसी तर्ज पर सच्चर कमिटि, मुस्लिम वर्ग को धर्म के आधार पर आरक्षण उसी DIOVIDE AND RULE प्रक्रिया की एक और कड़ी है।
एक धर्म निरपेक्ष राज्य में धर्म के आधार पर आरक्षण की सोच एक मानसिक विकृति की द्योतक है। आज मुस्लिम वर्ग,कल सिक्ख वर्ग,परसों इसाई,पारसी,बहाई तत्पश्चात् इनकी अलग शाखायें पता नहीं कितने भागों में बंटेगा ये भारत। एक फ्रेंच शासक ने कहा था “BE THERE DELUGE AFTER ME. यानि मेरे बाद चाहे प्रलय आ जाये ,मुझे क्या। क्या इसी विचार से यह विकृत राजनीति के संकेत नहीं प्राप्त हो रहें हैं। यह चुनाव सलट जाये,सत्ता मिल जाये,प्रतिफल में चाहे देश जाये भाड़ में।
नीरा राडिया तो आतंकवाद से भी अधिक गम्भीर मुद्दा है। आतंकवाद की घटनाओं में आंचलिक मार करने की क्षमता है लेकिन नीरा राडिया जो कि मूलतः सरकारी तन्त्र,कारपोरेट जगत,मीडिया,न्यायप्रणाली यानि समाज के चारों पायों में लगी दीमक की सुचक है,इसकी क्षमता आतंकवाद से सौ गुनी घातक है। इस OMNIPOTENT,OMNIPRESENT भ्रष्टाचार पर युवराज की कोई टिप्पणी नहीं है। नीरा राडिया जिस रोग की SYMPTOM हैं,उसने तो पूरे देश को नागफांस की तरह ग्रस रखा है। सर्वादिक साफ छवि की बात करने वाले और दिखने वाले श्री रतन टाटा की छवि भी दागदार हो गयी है। ऐसा प्रतीत होता है सब ने चेहरों पर महज मुखौटे बांध रखें हैं। एक नकली चेहरा लगाये घूम रहें हैं और हमाम में सारे नंगे हैं।
सबसे अधिक दोष मीडिया का है । हर छोटी बड़ी घटना पर गणतन्त्र की दुहाई देने वाले मिडिया ने इस सत्ता के हाट में खुला कर दांव खेले हैं। करेले पर नीम यह की भेद खुल जाने पर सारा मीडिया चुप मारे बैठा है,मानो उसे सांप सुंघ गया हो। मैंगलोर के पब में एक घटना घटती है,मीडिया सारे देश को हिला कर रख देता है। यह “राडियागेट” उससे सहस्त्र गुनी बड़ी घटना है लेकिन चुंकि हम(मीडिया) स्वयं आरोपी हैं तो कोई कुछ नहीं कहेगा।
उधर कांग्रेस का महाअधिवेशन चल रहा है,इस सारे प्रकरण में सबसे अधिक सत्ता पक्ष निशाने पर है। तथापि सारे अधिवेशन में नीरा “राडियागेट” पर प्रधान मन्त्री या सोनिया जी कि तरफ से एक शब्द नहीं आता है।
भारत में भ्रष्टाचार की मात्रा काफी अधिक है,यह तो सर्वविदित है लेकिन अगर दलगत राजनीति के तहत सरकार के पास सिर्फ वोट की राजनीति एवं आगामी चुनाव जीतना ही एक मात्र लक्ष्य है,तो शासन के नाम पर सिर्फ नाटक की ही अपेक्षा की जा सकती है। और अगर नाटक ही करना है तो फिर संसद को सिनेमा एवं टी वी के कलाकारों से भरना बेहतर होगा। वे दिखते तो बेहतर हैं हीं और राजनीतिज्ञों की तरह उनका पेट इतना बड़ा भी नहीं है कि 1,76,000 करोड़ हजम कर जायें।
चलते चलते मेरा यह सारा प्रलाप लोमड़ी के अंगूर खट्टे सम है। भय्ये खेद तो इसी बात का है कि हम क्यों नहीं इस लायक हुये कि हमार नाम भी राडिया टेप में सुन जाता।
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